शीर्षक: तारक मेहता का रहस्यमय सफरगोकुलधाम सोसाइटी में उस सुबह कुछ अलग ही बेचैनी थी। आसमान में घने बादल छाए थे, हवा में अजीब सी ठंडक थी और सोसाइटी के पुराने पीपल के पेड़ से रह-रह कर पत्ते झर रहे थे। आम दिनों में जहाँ बच्चों की किलकारियाँ और महिलाओं की बातचीत गूंजती रहती थी, वहाँ आज एक अनजाना सन्नाटा पसरा हुआ था।जेठालाल अपनी बालकनी में खड़े होकर मोबाइल फोन को बार-बार ऊपर उठा रहे थे।“अरे बाप रे बाप, नेटवर्क ही नहीं है! आज तो दुकान भी बंद रखनी पड़ेगी क्या?”उसी समय बगल की बालकनी से भिड़े खिड़की खोलते हैं।“जेठालाल,