मुंबई 2099 – डुप्लीकेट कमिश्नररात का समय। मरीन ड्राइव की पुरानी सुरंग वीरान थी। हवा में नमी और अजीब सा सन्नाटा।कमिश्नर अरुण देशमुख जैसे ही आगे बढ़े, अचानक उनकी नज़र पास पड़े एक पत्थर पर गई।वहाँ कोई नीली-सी चमकती हुई चिप पड़ी थी।जैसे ही उन्होंने उसे उठाया, वह अपने आप एक्टिव हो गई।अचानक हवा में एक होलोग्राफिक स्क्रीन उभरी… और उसमें जो शख़्स दिखा, उसे देखकर देशमुख के पैरों तले ज़मीन खिसक गई।वो शख़्स हूबहू उन्हीं जैसा था —अरुण देशमुख की कॉपी!रहस्यमयी ध्वनि स्क्रीन पर ‘डुप्लीकेट देशमुख’ मुस्कुराया और बोला –“क्यों कमिश्नर, चौक गए? डरिए मत… ये कोई जादू नहीं है।ये