मैंने फ़ोन स्क्रीन की आख़िरी लाइन दोबारा पढ़ी—“जमालीपुरा अस्पताल पहुँचिए। जल्दी।” दिल की धड़कन तेज़ हो गई। “निश! बाहर आओ, तुरंत!” मैंने आवाज़ लगाई। निशिका पानी से बाहर निकली—भीगी हुई, काँपती हुई। “क्या हुआ? कौन-सा फ़ोन था?” “मौसी को अस्पताल ले गए हैं। चलो—अभी।” उसकी मस्ती एक ही पल में गायब हो गई। पानी उसके पैरों से टपक रहा था, शरीर ठंड से काँप रहा था। “कम से कम मुझे… बदन सुखाने का मौका तो दो!” उसने घबराकर कहा। मैंने कार का हीटर तेज़ किया। “गाड़ी में बैठो—बस। रास्ते में सूख जाएगा। अभी समय नहीं है।” हम तेज़ी से गाँव