नदी तक जाने वाला रास्ता गाँव से थोड़ा बाहर निकलकर जंगल की ओर मुड़ता था। सुबह की धूप हल्की-हल्की पेड़ों के बीच से छनकर गिर रही थी, और हवा में देवदार की खुशबू थी। रात की बेचैनी के बाद यह रास्ता कुछ ज़्यादा ही शांत, ज़्यादा ही सुकूनभरा लग रहा था। निशिका खिड़की से बाहर देख रही थी। “कितना सुन्दर है यहाँ,” उसने कहा। “अगर यह गाँव इतना अजीब न होता तो छुट्टियों में आना अच्छा लगता।” मैंने मुस्कुराकर कहा, “सुबह का सूरज सबको अच्छा बना देता है। गाँव को भी।” धीरे-धीरे सड़क खुलकर एक छोटे-से किनारे पर पहुँची जहाँ