सुबह गाँव में कुछ अलग ही तरह का उजाला था। रात की भारी चुप्पी के बाद यह रोशनी मानो हल्की-सी राहत जैसी लगी। मुर्गे की आवाज़, दूर किसी घर में बर्तन बजने की ध्वनियाँ—कुछ-कुछ सामान्य-सा माहौल। बच्चों की नींद खुलते ही दोनों की एक ही ज़िद शुरू हो गई—स्कूल जाना है। आरव तो ख़ास तौर पर उत्साहित था। “पापा, गाँव का स्कूल देखना है,” उसने आँखें चमकाते हुए कहा। मायरा भी नए बच्चों से मिलने के लिए उतावली थी। निशिका ने हँसते हुए कहा, “चलो, जाने दो। दिन में तो सब ठीक ही लगता है इस गाँव में।” मैंने अपनी