एपिसोड 2: डर से भरोसे तककमरे में अब भी वही अजीब-सी ठंड थी, जैसे दीवारों के भीतर कोई अनकही साँसें घूम रही हों।आरव अपनी जगह जड़ बना खड़ा था—आँखें सामने तैरती उस आकृति पर टिकी हुईं।वह लड़की…अब पूरी तरह पेंटिंग से बाहर आ चुकी थी।उसके चेहरे पर डर नहीं था, बल्कि एक थकी हुई शांति—जैसे सदियों बाद किसी ने उसका नाम पुकारा हो।“तुम सच में… हो?”आरव की आवाज़ काँप रही थी।लड़की ने धीरे से सिर हिलाया।“हाँ। और तुम सच में मुझे देख पा रहे हो… यही सबसे हैरानी की बात है।”आरव ने अनजाने में दो कदम पीछे हटते हुए