रात के 2:37 हो रहे थे। कमरे में गहरा सन्नाटा था, इतना गहरा कि टेबल पर रखी पुरानी अलार्म घड़ी की 'टिक-टिक' किसी हथौड़े जैसी लग रही थी। मेज़ पर कॉफी का मग रखा था, जो घंटों पहले ठंडा हो चुका था।विक्रम (लेखक) अपनी कुर्सी पर पीछे की ओर झुका हुआ बैठा था। उसके सामने लैपटॉप की स्क्रीन खुली थी। एक कोरा पन्ना (blank page)। और उस पन्ने पर एक काली लकीर (cursor) बार-बार आ रही थी और जा रही थी—जैसे उसे चिढ़ा रही हो। 'ब्लिंक... ब्लिंक... ब्लिंक...'।वह कन्फ्यूज था। उसके दिमाग में विचारों का बवंडर था, लेकिन उंगलियां कीबोर्ड