युगमहाभारत - 2

अध्याय 2 - आत्म परीक्षारात्रि के अंतिम पहर की निस्तब्धता में हस्तिनापुर जैसे किसी अदृश्य प्रतीक्षा में स्थिर था। दीपक की लौ हवा के झोंकों से डोल रही थी, पर महल का विशाल प्रांगण गंभीर और शांत था। आरात्रि के पश्चात जब पूर्व दिशा में हल्की सी आभा फैलने लगी, राजा शांतनु अपने कक्ष से बाहर आ गए। उनकी आँखों में जागी रातों का बोझ था, पर मन में एक अजीब सी ऊर्जा थी, जिसे वे समझ नहीं पा रहे थे। महल के ऊपर के प्रांगण में खड़े होकर उन्होंने दूर दूर तक नजर दौड़ाई। हवा में अभी भी गंगा की स्मृति