करन ने खिड़की की ओर देखा, मगर वहाँ कुछ भी नज़र नहीं आया। वो परछाई जैसे चाहकर खुद को करन की आँखों से छुपा रही थी।करन ने गहरी साँस ली और बोला,“अनाया, तुझे अब अकेला नहीं छोड़ सकता। जहाँ तू जाएगी, मैं भी साथ रहूँगा। चाहे दिन हो या रात, मैं तेरी ढाल बनकर खड़ा रहूँगा।”अनाया ने उसकी तरफ़ देखा, उसके होंठ काँप रहे थे,“पर करन… अगर ये साया तुझसे लड़ाई ही नहीं चाहता? अगर वो हमें तोड़ना चाहता है? अगर उसके जाल में फँसकर मैं ही तुझसे दूर हो गई तो?”करन ने उसका हाथ कसकर पकड़ लिया,“ये तेरे डर