सुबह का सूरज अभी पूरी तरह निकला नहीं था, लेकिन Bikash की नींद खुल चुकी थी।रात की डायरी और Maina के शब्द—“इसे नाम न दें, धीरे-धीरे बढ़ने दें”—उसके दिमाग में गूंज रहे थे।ये वाक्य हल्का भी था और भारी भी।हल्का इसलिए कि उम्मीद थी, और भारी इसलिए कि जिम्मेदारी थी।वो छत पर गया। ठंडी हवा चेहरे से टकराई।आज दिल में जल्दबाज़ी नहीं थी—बस सुकून था।कॉलेज में बदला हुआ एहसासकैंपस में कदम रखते ही Bikash ने महसूस किया—सब कुछ वैसा ही है,पर फिर भी… कुछ बदला हुआ।Maina दूर से आती दिखी।आज वो सादे नीले सूट में थी, बाल खुले, कंधों पर