प्रेम : जो मिला भी नही, पर छोड़ा भी नही

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भूमिकाप्रेम संसार की सबसे शांत अनुभूति है। यह शोर नहीं करता, दावा नहीं करता, और न ही किसी प्रमाण का मोहताज होता है।कुछ प्रेम ऐसे होते हैं जो साथ चलकर जीवन बन जाते हैं, और कुछ प्रेम ऐसे होते हैं जो साथ न होकर भी पूरे जीवन की दिशा तय कर देते हैं।यह अध्याय उसी प्रेम के लिए है जो न तो पूरी तरह मिला, और न ही कभी छोड़ा जा सका। यह उस प्रेम की कथा नहीं है जो टूटकर बिखर गया, बल्कि उस प्रेम की अनुभूति है जो दूरी में भी जीवित रहा, मौन में भी पवित्र रहा