अपूर्व की ऑंखें अन्वेषा के जवाब का इन्तजार कर रही थी। "मतलब ये," अन्वेषा आगे बढी - "कि कुछ सच्चाइयाँ सिर्फ़ आत्माएँ नहीं, जिंदा लोग भी छुपाते हैं। और कभी-कभी... वो आत्माओं से भी ज़्यादा ख़तरनाक होते हैं।"उसकी चाल अब सधी हुई नहीं, भयावह लग रही थी। जैसे वो कुछ और भी जानती हो, और जानबूझकर अपूर्व को भटकाना चाहती हो।अपूर्व अब उलझ चुका था— और अन्वेषा वहां से जा चुकी थी। हवेली की दीवारें अब भी कुछ कहती थीं। लेकिन उनकी आवाज़ में शोर नहीं, सिसकियाँ थीं। अपूर्व की आँखें लाल थीं—नींद नहीं, पीडा का नतीजा। उसकी माँ की डायरी अब