अन्वेषा अब वहां नहीं थी । हवेली के सबसे पुराने हिस्से में एक दीवार के पीछे, एक छुपा हुआ दरवाज़ा था, जो किसी ने दशकों से नहीं खोला था। अपूर्व उस दरवाज़े के सामने खडा था, उसके हाथ काँप रहे थे, और दिल धडकन की जगह विस्फोट कर रहा था।और अचानक ही दरवाज़ा खुद से खुल गया।न कोई चाबी, न कोई धक्का।जैसे किसी ने भीतर से खोल दिया हो।भीतर... अंधेरा नहीं था, बल्कि हल्की नीली रोशनी थी, जैसे आत्माओं की साँसें दीवारों में बसी हों।अपूर्व सीढिया उतरता गया।हर कदम पर दीवारों से आवाज़ें आती थीं। “बेटा… वापस मत जा…” “तू भी ग़लतियाँ दोहराएगा?”अचानक