बेज़ुबान

बेज़ुबानलेखक राज फुलवरेसुबह की हल्की धूप शहर की सड़कों पर बिखरने लगी थी। चाय की थड़ियों पर भाप उड़ते कुल्हड़ों की महक थी, आँखों में नींद लिए लोग अपने-अपने काम पर निकल रहे थे। इसी भीड़ में एक दुबला-पतला सा गूंगा लड़का, फटे कपड़ों में, नंगे पाँव… हाथ में एक स्टील का छोटा डिब्बा लिए लोगों के पीछे-पीछे चल रहा था। कभी किसी के हाथ जोड़कर आगे करता, कभी आँखों से दया की उम्मीद… लेकिन बहुत कम हाथ बढ़ते थे।उसका नाम था आरव। उम्र करीब तेरह-चौदह साल। बोल नहीं सकता था—जन्म से ही। माँ-बाप कौन थे, उसे याद नहीं। इतना