जाड़े के दिन थे और संध्या काल का समय था।गंगा मैया बहुत शांत थी।कभी कभी कुछ लहरें घाट किनारे को छूती थी।अस्त होते हुए सूरज की सुनहरी किरणे उन लहरों को सुनहरे आंचल से ढक रही थी।घाट किनारे आरती की तैयारी हो रही थी।दीप जलाए जा रहे थे।कुछ ही समय बाद अंधेरा होने लगा ।जलते हुए दीपकों की तेज लौ घाट के किनारे को ओर भी खूबसूरत बन रखी थी।घाट की सीढ़ियों पर बैठ कर समीक्षा आन वाली लहरों को देख रही थी। घाट पर आरती के लिए भक्तों का आन बढ़ गया था।ओर देखते देखते सारे घाट पर भीड़