लेखक की कलम से-- कभी लगता है कि ख़्वाब लिख दूँ, कभी कल्पनाएँ… पर जब कलम जीवन की सच्चाई को छूती है, तब लगता है—शायद यही सबसे सुंदर लेखन है। कभी-कभी मन में एक प्रश्न बार-बार उभरता है—मैं क्या लिखूँ? ख़्वाब लिखूँ तो लगता है वे बहुत दूर हैं, कल्पनाएँ लिखूँ तो लगता है वे बहुत व्यापक हैं, और यथार्थ लिखूँ तो लगता है वह इतना सरल है कि शब्दों का मोह नहीं रखता। फिर भी कलम जब हाथ में आती है तो मन अपने भीतर के तीनों संसारों को टटोलने लगता है—वह संसार जहाँ ख़्वाब सूरज की किरणों को पकड़कर