चाय की दुकान

बात कुछ साल पहले की है।सावन का महीना था। रात भर झमाझम बारिश हुई थी और सुबह जैसे धरती ने नया चोला पहन लिया था। गाँव की पगडंडी पर हल्की धूप सुनहरी चादर की तरह बिखरी हुई थी। हवा में ओस की नमी, खेतों की मिट्टी की महक, और दूर कहीं से आती कोयल की कूक — सब मिलकर उस सुबह को जादुई बना रहे थे।गाँव छोटा था, लेकिन जीवन से भरा हुआ। नाम था “भोरपुरा” — और वहाँ की हर सुबह जैसे किसी नई कहानी की शुरुआत होती थी।गाँव के कोने पर एक पुराना नीम का पेड़ था, जिसकी