वो इश्क जो अधूरा था - भाग 12

कोने से एक और छाया उभरी—ये छाया बाकी सब से अलग थी। इसमें गुस्सा नहीं था, दर्द था। उसकी आँखों में पश्चाताप झलक रहा था।वो छाया धीमी और गहरी आवाज में बोली — “मैं रुखसाना हूँ… लेकिन अब सिर्फ मैं नहीं हूँ… अन्वेषा भी मैं ही हूँ…”अन्वेषा कांपने लगी।“नहीं… मैं अन्वेषा हूँ… मैं किसी और की नहीं… अपूर्व की हूँ…”छाया ने कहा— “लेकिन अपूर्व, वो नासिर नहीं है… वो… आगाज़ ख़ान है… जिसने मुझे… मुझसे छीन लिया था।”अपूर्व सन्न। “मैं? न … नहीं… ये सच नहीं हो सकता…”लेकिन तभी अन्वेषा की आँखों में एक पल के लिए रुखसाना की झलक उभरी—उसकी साड़ी, उसकी