उस बाथरूम में कोई था - अध्याय 2

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अलाव की गरम लपटें अभी भी हल्की-हल्की तड़क रही थीं, मगर अब किसी की भी नज़रें आग पर नहीं थीं। सबका ध्यान बस रंजीत पर टिक गया था—उसकी आँखें जैसे उस अँधेरे जंगल में कहीं अटक गई थीं, कहीं बहुत पीछे, किसी बीते हुए समय में। राधिका ने धीमे स्वर में पूछा, “रंजीत… क्या हुआ था वहाँ?” रंजीत ने एक लंबी साँस ली, जैसे किसी जमे हुए स्मृति-ताले को खोल रहा हो। फिर उसने बोलना शुरू किया— करीब आठ-नौ साल पहले की बात है, जब मुझे सुबह-सुबह फोन आया—मौसा जी नहीं रहे। अचानक। मैं स्तब्ध रह गया। उनकी तबीयत ठीक