हिमालय की ढलानों पर रात पूरी तरह उतर चुकी थी। देवदार के घने जंगल के बीच बने छोटे-से कैम्प में एक अलाव जल रहा था, जिसकी लपटें सबके चेहरों पर नारंगी रोशनी बिखेर रही थीं। ठंडी हवा तम्बुओं को हल्के-हल्के हिला रही थी और जंगल की ख़ामोशी सिर्फ़ आग की चटकती आवाज़ से टूट रही थी। बीस साल बाद कॉलेज के छह पुराने दोस्त—विक्रम, राधिका, रोहन, जुही, समीर और रंजीत—फिर वही पुराना गोल घेरा बनाकर बैठे थे, जैसे कभी हॉस्टल की छत पर या लॉन में बैठते थे। जुही ने गर्म चाय का मग थामते हुए काँपती आवाज़ में कहा,