बरसात की बूँदें टीन की छत पर एक लयबद्ध संगीत पैदा कर रही थीं। बाहर अँधेरा घिर चुका था, लेकिन अंदर कमरे के एक कोने में रखे छोटे से दीये की पीली रोशनी में एक अजीब सा सुकून था।अस्सी साल के मोहन लाल अपनी पुरानी लकड़ी की आराम कुर्सी पर बैठे थे। उनके बगल में बैठी थीं उनकी पत्नी, राधा। साठ साल से ज़्यादा की यह जोड़ी अब एक-दूसरे की आत्मा का हिस्सा बन चुकी थी।राधा गर्म ऊन से मोहन के लिए एक और स्वेटर बुन रही थीं। सुइयों की खट-खट और बूँदों की टप-टप मिलकर एक अजीब सी मन