जब सृष्टि के आदिकाल में ऋषियों ने वेदों का प्रथम निनाद सुना, तभी यह भी घोषित हुआ कि धर्म ही विश्व की धुरी है। युगों के प्रवाह में जब सत्य दुर्बल हुआ और अधर्म ने अपना विष फैलाना आरम्भ किया, तब आरम्भ हुई वह कथा, जिसे मानव इतिहास महाभारत नाम से जानता है। यह एक ऐसा ग्रंथ है जिसमें देव, दानव, ऋषि, योद्धा, श्राप, वरदान, कूटनीति, मैत्री, विश्वासघात, प्रेम, पराक्रम और अंततः धर्म का अंतिम निर्णय समाहित है। यह वही गाथा है जिसमें भीष्म की अचल प्रतिज्ञा है, गांधारी का शाप है, द्रौपदी की अग्नि-घोषणा है, कर्ण की दानशीलता है,