लेखक की कलम से: यह कविता मन के उन अनकहे प्रश्नों की यात्रा है, जो उजियारे पलों में भी अपनी छाया ढूँढ लेते हैं। साधारण जीवन, संबंधों की जटिलता, अनुशासन की सीमाएँ और मन के भीतर चलने वाला द्वंद—सब यहाँ शब्दों में ढलकर एक दार्शनिक आत्म-संवाद बन जाते हैं। यह रचना उन भावों को पकड़ती है, जिनसे हर व्यक्ति कभी न कभी गुजरता है: कुछ पाने की चाह, कुछ खोने का भय, संघर्ष का सत्य और संबंधों की अनिश्चितता। कभी-कभी साधारण पल भी मन