दर्पण भाग 4लेखक राज फुलोरेरात की खामोशी में हवेली के पीछे एक तूफ़ान उठ रहा था।संग्राम को आखिर पता चल गया था कि जो कुछ भी गाँव में हो रहा है — उसके पीछे सिर्फ एक ही आदमी है:हरिओम ठाकुर।और उसी रात संग्राम को अनामिका ने बुलाया।वह पुरानी बंसी वाले पीपल के पेड़ के नीचे खड़ी थी।चेहरा शांत, पर आँखों में सदियों का दर्द।“संग्राम… आज सब खत्म होगा,”उसने धीमे से कहा।संग्राम ने पूछा,“तुम सच में कौन हो, अनामिका?”कुछ पल खामोशी रही…फिर उसने सिर झुका दिया।“मैं वही हूँ… जिसे ठाकुर ने मारकर आत्मा बना दिया।मैं न जी पाई… न मर पाई।”संग्राम