दर्पण - भाग 3

⭐दर्पण भाग 3लेखक राज फुलवरेन्याय हो चुका था।संकल्पना जेल में थी।कल्पना को मोक्ष मिल चुका था।पर संग्राम की कहानी यहाँ ख़त्म नहीं होती—क्योंकि कुछ आत्माएँ शांति की नहीं…बल्कि बचाई जाने की पुकार करती हैं।---एक. संग्राम की नई रात — फिर से लौटती धड़कनेंफैसले वाली रात संग्राम अपने कमरे में अकेला बैठा था।खिड़की आधी खुली थी, हवा कमरे में हल्की सरसराहट भर रही थी।पर उसके भीतर एक अजीब-सी बेचैनी थी।अचानक…कार के मिरर पर हल्की धुंध उभरने लगी।संग्राम चौककर खड़ा हो गया।उसने धीरे से कहा—संग्राम:“कल्पना…? क्या तुम हो?”लेकिन मिरर में उठता धुआँ कल्पना का नहीं था।इस बार उस धुंध में एक नया