यादो की सहेलगाह - रंजन कुमार देसाई (6)

                     : : प्रकरण : : 6      उस के बाद मुझे सुनीता में अपनी जीवन साथी की छबि नजर आई थी. वह मेरी पिछ्ली बेंच पर बैठती थी. मेरा रोल नंबर 27 था और उस का 28.        हमारे बीच कोई बात चीत नहीं हुई थी. केवल इम्तिहान में मैंने उसे कुछ लिखने की मदद की थी.       कोलेज छूटने के बाद हम एक ही रास्ते पर रोजाना आगे पीछे होते थे.. लेकिन दोनों में से किसीने भी एक दूसरे से बात करने का प्रयास नहीं