अधुरी खिताब - 54

--- एपिसोड 54 — “किस्मत की दबी हुई आवाज़ें”हवा में कुछ अनकहा ज़िंदा था।जैसे किसी ने अधूरी किताब के पन्नों को छेड़ दिया हो,और वे खुद-ब-खुद खुलकर अपने रहस्य बयान करने लगे हों।रात का सन्नाटा कभी इतना भारी नहीं लगा था।आर्या अपनी मेज के सामने बैठी थी।दीवार पर टंगी पुरानी घड़ी की टिक-टिकआज उसकी धड़कनों से भी ज़्यादा तेज़ सुनाई दे रही थी।उसकी आँखें बार-बार उस अधूरी किताब पर जा टिकतीं—वही किताब जिसे वह पिछले तीन एपिसोड से खोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रही थी।“क्यों ऐसा लगता है… कि इसमें मेरा नाम लिखा है?”उसने गहरी साँस ली।पन्नों के किनारे