दर्पण - भाग 2

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दर्पण भाग 2लेखक राज फुलवरेकल्पना की अधूरी कहानीहवा का झोंका मेरी गर्दन को छूकर जैसे भीतर तक उतर गया था।रियर-व्यू मिरर में कल्पना का चेहरा साफ दिख रहा था—पीला, उदास, और गहरे दर्द से भरा।गाड़ी सड़क के किनारे खड़ी थी।मंदिर के घंटों की आवाज़ हवा के शोर में घुलती जा रही थी।मेरी साँसें भारी थीं, और दिल बेकाबू धड़क रहा था।मैंने हिम्मत जुटाकर पूछा—संग्राम:“कल्पना… तुम कौन हो? ये सब मुझे ही क्यों दिख रहा है?”कल्पना की आँखें नम हो गईं।उसने धीरे से कहा—कल्पना:“क्योंकि… सिर्फ तू ही है जो मुझे देख सकता है।और सिर्फ तू ही है… जो मुझे न्याय दिला