BAGHA AUR BHARMALI - 10

  • 441
  • 129

Chapter 10 — भारमाली और बागा का अंतआशानंद अब बागा और भारमाली के पास ही रहने लगे थे।राजमहल की चमक-दमक छोड़कर वे इस छोटे से झोंपड़े में ऐसे रम गए जैसे उन्हें यहीं होना था।बागा की हंसी, भारमाली की शरारत, और दोनों के बीच की अनकही समझ…आशानंद इन सबको अपने दोहों में उतारते गए।लेकिन जीवन कभी एक ही रंग नहीं रखता।बागा युद्ध करने वाला आदमी नहीं था,वह बस एक बागी दिल वाला इंसान था—सिस्टम के खिलाफ, राजाओं के खिलाफ, और उन दीवारों के खिलाफ जो इंसान को बांध देती हैं।बरसात के दिनों में उसे तेज़ बुखार चढ़ा।पहले तो सबने सोचा—दो