Chapter 5 — भारमाली-मालदेव संबंध और उम्मादे का रुठ जानाशाम का समय था।जोधपुर के महल में उस दिन कुछ अलग ही सन्नाटा पसरा था—मानो हवा भी किसी अनकहे तूफ़ान की आहट सुन रही हो।शाम का समय था।जोधपुर के महल में उस दिन कुछ अलग ही सन्नाटा पसरा था—मानो हवा भी किसी अनकहे तूफ़ान की आहट सुन रही हो।रानी उम्मादे अपने कक्ष में बैठी सिंगार कर रही थीं।उनके हाथों की चूड़ियाँ खनकते-खनकते अचानक थम जातीं,क्योंकि मन कहीं और भटक रहा था।नई-नई शादी, नया शहर—और नया जीवन…वह सबकुछ समझने की कोशिश में थीं।तभी एक दासी ने आकर झुककर कहा—“रानी साहिबा, महाराज ने