गाँव, किले, रेगिस्तान और पुरानी हवेलियाँ—हर जगह इन दोनों की छाप मिलती है, पर साफ़-साफ़ कुछ नहीं मिलता।कुछ बूढ़े बताते हैं कि उनके इर्द–गिर्द जो घटनाएँ हुईं, वो साधारण नहीं थीं।कुछ कहते हैं ये किस्मत के खेल थे, कुछ इन्हें किसी पुराने श्राप या अधूरी प्रतिज्ञा से जोड़ते हैं।कहानी आगे बढ़ती है तो लगता है हर मोड़ पर कोई छाया साथ चल रही है—कभी किसी का नाम हवा में तैरता है,कभी किसी रात की आवाज़ सच से ज़्यादा डर पैदा करती है,और कभी लगता है कि दोनों से जुड़ा हुआ सच किसी ने जानबूझकर दबा रखा है।जो भी हुआ था,