वो इश्क जो अधूरा था - भाग 10

“आगाज़…”वही स्वर… धीमा… सरसराता हुआ… जैसे किसी ने अपूर्व के कान में साँस लेकर बोला हो।अपूर्व का शरीर ठिठक गया। उसने सिर उठाकर देखा — सामने वही पुराना पीपल का पेड़। कई शाखाएँ अब भी झूल रही थीं जैसे किसी अनदेखी लाश को लटकाए हों। अचानक हवा तेज़ हुई। चारों ओर धूल उड़ने लगी।अपूर्व का दिल धड़कता रहा… कदम जैसे खुद-ब-खुद उस पेड़ की ओर बढ़ते गए।एक बार… दो बार… तीन बार आवाज़ फिर आई —“आगाज़… खून बहाया था तुमने…”वो आवाज़ अब चारों दिशाओं से आ रही थी।और तभी—अपूर्व की आँखों के आगे एक भयानक दृश्य कौंध गया।उसने देखा — ज़मीन पर खून में सनी एक औरत पड़ी थी, उसकी