वो इश्क जो अधूरा था - भाग 9

“आग़ाज़…”यह पुकार सिर्फ एक आवाज़ नहीं थी — यह उस दबी हुई रूह की दस्तक थी, जो सदियों से बंद तहख़ाने की दीवारों में घुली हुई थी।अपूर्व ने पलटकर देखा।कमरे में कोई नहीं था।पर उस आवाज़ की गर्माहट अब भी उसके कानों में गूंज रही थी — जैसे किसी अपने ने बहुत दूर से पुकारा हो... धीरे से... दर्द में डूबी हुई वो आवाज ..."आग़ाज़..."वो ठिठक गया। एक सिहरन उसके पूरे शरीर में समा गई । "किसने...अ … आ ….वा …?" उसके होंठ हिले, पर शब्द अधूरे रहे।अचानक, दीवार पर जड़े पुराने आईने में कुछ हलचल सी दिखी। अपूर्व ने गौर से देखा