….अगली सुबह...सुबह की पहली किरणों ने हवेली की खिड़कियों से झाँककर भीतर की नींद को सहलाना शुरू किया। पिछली रात की घबराहट अब एक धुंधली सी स्मृति लग रही थी।अपूर्व बिस्तर से उठा, लेकिन अन्वेषा अब भी आँखें मूँदे पड़ी थी। उसका चेहरा शांत था, पर माथे पर पसीने की महीन रेखा बता रही थी कि नींद इतनी सुकूनभरी नहीं रही होगी।वो धीरे से उसके पास बैठा और उसके बालों को पीछे किया। तभी अन्वेषा ने आँखें खोलीं।“तुम कब उठे?” उसने नींद भरी आवाज़ में पूछा।“तब जब तुम्हारा सपना ख़त्म हुआ।” अपूर्व ने मुस्कुरा कर जवाब दिया।अन्वेषा ने सिर घुमाया।