Chapter 5 — “तहख़ाने का दरवाज़ा”सविता की आवाज़ जैसे दीवारों में अटक गई थी।अर्जुन मेहरा कुछ सेकंड तक कुछ बोल ही नहीं पाया।कमरे की हवा भारी थी, जैसे किसी ने अचानक ऑक्सीजन खींच ली हो।> अर्जुन (धीरे से): “तहख़ाने में… ज़िंदा?”सविता की आँखें दूर कहीं अतीत में खो गईं।“रघुनाथ ने कहा था कि वो भागने की कोशिश कर रही थी…कि वो किसी से मिलने वाली थी…और कि वो इस घर, इस परिवार को बर्बाद कर देगी।”अर्जुन ने एक कदम पीछे लिया।“और आपने उस पर यक़ीन कर लिया?”सविता कुछ बोल न सकीं।बस काँपते हुए एक पुरानी चाभी की ओर इशारा किया