वे खामोशी

पुराने दिनों की गूँजशाम के साढ़े पाँच बजे थे।दिल्ली की सर्द हवा में हल्की धूप अब सुनहरी परछाईं में बदल चुकी थी।कॉफ़ी हाउस के बाहर पुरानी घड़ी की सुइयाँ जैसे किसी बीते वक्त को याद दिला रही थीं —वही वक्त, जब नीहा और राहुल की हँसी पूरे स्कूल में गूंजा करती थी।नीहा ने दरवाज़ा खोला।हल्की-सी घंटी बजी — “टिन टिन” — और उसके साथ एक पुराना चेहरा सामने था।राहुल।वो अब पहले जैसा लड़का नहीं था जो हर वक़्त मस्ती करता था।अब वो शांत, संयमित और थोड़ा थका हुआ-सा दिख रहा था।नीहा के चेहरे पर मुस्कान आई, मगर उस मुस्कान में