मुलाक़ात - एक अनकही दास्तान - 9

मुंबई की रफ़्तार हर किसी को अपने साथ बहा ले जाती है—लोकल की गूंजती पटरियाँ, ऑफिस की दौड़, और रात के खाने तक उठती भागदौड़। हर मोड़ पर एक नई कहानी जन्म लेती है, हर गली में एक नया चेहरा अपना बोझ ढोता दिखता है। लेकिन आदित्य के लिए यही शहर, जो कभी सपनों का आंगन लगता था, अब एक खामोश कैदखाना बन चुका था—ऐसा कैदखाना जहाँ बाहर बहुत शोर था, लेकिन भीतर एक गहरा सन्नाटा।दिनभर वह खुद को काम में इस तरह झोंक देता जैसे किसी गहरे समुंदर में डूबकर सतह की आवाज़ें सुनाई ही न दें। मीटिंग्स में