मुलाक़ात - एक अनकही दास्तान - 8

मुंबई—वो शहर जो किसी एक ज़िंदगी की रफ़्तार से नहीं चलता, बल्कि लाखों धड़कनों की ताल पर सांस लेता है। यहाँ न कोई किसी का इंतज़ार करता है, न किसी के जाने से ग़मगीन होता है। लोकल की पटरी से लेकर मरीन ड्राइव की पत्थरों तक, हर कोना अपने अंदर अनगिनत कहानियाँ छुपाए बैठा है—खुशियों की, टूटे सपनों की, भागती ज़िंदगी की, और उन चुपचाप रोती उम्मीदों की, जिन्हें कोई देख नहीं पाता।और इन्हीं अनजान चेहरों, भीड़ भरी सड़कों और तेज़ चलती ज़िंदगी के बीच, अब आदित्य भी था—खामोश, धीमा, और भीतर एक तूफान को अपने सीने से लगाकर चलता