इश्क में तबाही - 2

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(मेरे पिता के जमाने की यादें)एपिसोड 1 : "शुरुआत एक सीधे इंसान से"गांव की कच्ची गलियों में आज भी बुज़ुर्ग जब बैठते हैं तो कहानियों की झोली खुल जाती है।मेरे पिताजी अकसर सुनाया करते थे —“बेटा, इंसान को पहचानना आसान नहीं। जो चेहरे से सीधा-सादा लगे, वही कभी वक्त और हालात से इतना बदल जाता है कि पूरा गांव उसका नाम सुनकर कांप उठे।”यही कहानी है रमेश सुरेश की।रमेश हमारे गांव का ही था। एकदम सीधा, मेहनती और गांव की चौपाल में हमेशा हंसी-मज़ाक करता हुआ। उसकी आँखों में सपने थे – छोटा सा खेत, कुछ मवेशी और अपने परिवार