में और मेरे अहसास - 138

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हँस के गले मिलते हैं  सभी गिले शिकवे भूलाकर हँस के गले मिलते हैं l समंदर किनारे हाथों में हाथ डालकर फिरते हैं ll   प्यार में बुने हुए रिश्तों में फ़िर मिठास आने से l दिल के गुलशन में खुशीयों के गुल खिलते हैं ll   बेरहम ज़माने ने बहुत सारी चोट दे रखी है तो l मोहब्बत की रिश्वत देके चाक जिगर सिलते हैं ll   वो बे-वफ़ा ही था बे-वफ़ा होने से पहेले ही से l बे-वफ़ा से फ़िर जुदा होने के डर से हिलते हैं ll   आठ दस घटों की मुलाकात से जी नहीं भरता