खामोश कमरा

दिल्ली की पुरानी बस्ती में वह मकान आज भी वैसा ही खड़ा था — जैसे वक्त ने उसे छुआ ही न हो। दीवारों पर नमी की परतें थीं, पेंट जगह-जगह से उखड़ा हुआ, और खिड़कियों के शीशे इतने पुराने कि उनमें अब चेहरे नहीं, बस धुंध दिखाई देती थी।उसी घर के ऊपर वाले हिस्से में आयुषी रहती थी — अकेली।वो एक फ्रीलांस राइटर थी। दिन में अपने लैपटॉप पर कहानियाँ टाइप करती, रात में कॉफी के प्याले के साथ अपने विचारों से बातें।लोग कहते हैं, जो लंबे समय तक अकेला रहता है, वो अपने भीतर की आवाज़ें सुनने लगता है।पर