कॉलेज का वही पुराना गलियारा, वही सुबह की हल्की धूप, वही library की खामोश खुशबू…सब पहले जैसा था,लेकिन अनिका के लिए दुनिया अब पहले जैसी नहीं रही थी—क्योंकि आरव बदल रहा था।धीरे-धीरे, चुपचाप… ऐसे जैसे हवा की दिशा बदल जाए और किसी को पता भी न चले।पहले वो दोनों साथ ही क्लास में enter करते थे,साथ में first bench लेते थे—कभी-कभी तो चारों ओर कितनी भीड़ होती थी,पर उन्हें लगता था कि दुनिया में बस वही दो लोग मौजूद हैं।पर अब…आरव क्लास में पहले से मौजूद रहता,या फिर आख़िरी में चुपचाप आकर ऐसी जगह बैठताजहाँ अनिका उसकी आँखें भी न