रात के ग्यारह बज चुके हैं।मैं अपने वीरान मकान में बेड पर पड़ा हु। फ़टाके बज रहे हैं। उनकी आवाजें बहुत तीव्र आवाजे जानवरों को विचलित कर रही हैं।मैं उस खाई से कैसे बचा आप लोगों को नहीं बताऊंगा। क्योंकि आपने मुझे इतना चिल्लाने पर भी हाथ नहीं दीया था।जानते हैं कितनी गंभीर बाब थी ये। अरे मैं उस गहरी खदान में समा भी सकता था। अकेला किसी को पता भी न चलता, सिवाय आपके।लेकिन आप को क्या। बस हादसे चाहिए, कोई भी आम आदमी वहां मर सकता था। मर सकता था, पर क्या मैं मर सकता हु? मेरा बस इतना