सातवाँ दरवाज़ा, अतरंगी लुटेरे

 साल दो हजार पच्चीस, दिल्ली की पुरानी गलियों में, जहाँ इतिहास की दीवारें अभी भी फुसफुसाती हैं, एक नई साजिश पनप रही थी. पुरानी हवेली के अंधेरे कमरों में, जहाँ चाँद की रोशनी भी डर से काँपती थी, बैठा था राजवीर सिंह—एक आदमी जो बाहर से एक साधारण व्यापारी लगता था, लेकिन भीतर से एक मास्टर ठग. उसकी आँखें काली और गहरी थीं, जैसे कोई कुआँ जिसमें अनगिनत राज दफ्न हों. राजवीर का अतीत रहस्यमय था; वो कहता था कि वो राजपूत खानदान का वारिस है, लेकिन सच तो ये था कि वो एक अनाथ था, जिसने ठगी को अपना