मेरे इश्क में शामिल रूहानियत है - 53

एपिसोड 53 — “जो लिखा नहीं गया… वही किस्मत बन गया” 1. नेहा और वह आवाज़ जो दीवारों से टकरा कर लौटती रहीकमरे की खिड़की आधी खुली थी।बाहर शाम की हवा में हल्की-सी राख जैसी ठंड थी —जैसे मौसम ने भी कोई रहस्य रोक रखा हो।नेहा अपने बेड के किनारे बैठी थी,उसी पन्ने को बार-बार पलटते हुएजिसके आख़िरी शब्द अभी भी उसके सीने को चीर रहे थे—“जो तुम्हें दिखता है… वह सच नहीं है, नेहा।”उसे समझ ही नहीं आ रहा था किये लाइन किसी और ने लिखी है यावह कलम खुद उसे बताने की कोशिश कर रही है।अचानक दरवाज़े