एपिसोड 48 — “नीली रूह का पहला पन्ना”(सीरीज़: अधूरी किताब)---1. हवेली में लौटती साँसें — जब रूहें जागने लगती हैंदरभंगा की हवेली उस रात वैसी नहीं थीजैसी कल थी।आज उसकी दीवारों परहल्की-हल्की धड़कनें चल रही थीं —जैसे हवेली खुद जीवित हो गई हो।नेहा ने ध्यान से सुना।दीवारें साँस ले रही थीं।हाँ… सचमुच साँस।कमरों से एक ठंडी खुशबू आ रही थी—नीली धुंध, स्याही की नमी,और कहीं दूर से आतीएक लड़की की धीमी आवाज़:> “दीदी… इस बार मत डरना।”नेहा का शरीर सिहर गया।ये आवाज़ उसकी बहन की थी —वही रूहजो वक़्त की कलम का हिस्सा बन चुकी थी।आरव ने उसकी ओर