एपिसोड 47 — “वक़्त की कलम और अधूरी रूह” (सीरीज़: अधूरी किताब) --- 1. एक चोट जो दिखती नहीं — पर बाकी सब बदल देती है नेहा जैसे ही अपने कमरे में लौटी, उसे लगा जैसे कमरे में सब कुछ वही है, पर कुछ ग़लत भी है — जैसे हवा की खुशबू बदल गई हो, जैसे दीवारों पर लटकी तस्वीरें पहले से हल्की लग रही हों, जैसे दुनिया उसे पहचान रही हो लेकिन वो दुनिया को नहीं। टेबल पर “रूह की कलम” रखी थी। उसकी नीली धड़कन धीमी थी, जैसे वो किसी