लेखिका: Tanya Singhकभी-कभी ज़िन्दगी वो सब छीन लेती है, जिसके बिना जीने की हमने कभी कल्पना भी नहीं की होती।पर शायद… वहीं से एक नई कहानी शुरू होती है।---1. शहर और धूल के बीचनैना ने शीशे में खुद को देखा — बाल बिखरे हुए, आँखों के नीचे काले घेरे, होंठों पर थकी हुई मुस्कान।वो पहले जैसी नहीं रही थी।कभी उसकी हँसी पूरे घर में गूंजती थी, अब बस खामोशी दीवारों पर टंगी रहती थी।दिल्ली की सुबह का शोरगुल खिड़की से अंदर आ रहा था। बसें, हॉर्न, ठेले, सब कुछ वही था — बस नैना नहीं थी जो पहले सब पर