सुबह का पहला उजाला अभी धरती को छू भी नहीं पाया था। ओस की बूंदें अभी भी हरे पत्तों के सिरों पर झूल रही थी। एक हल्की सी हवा आई और मेरे चारों ओर मिट्टी की खुशबू फैल गई। मैं ‘एक चींटी’, अपने छोटे से टीले के बाहर खड़ी थी। मेरा शरीर छोटा था, पर दुनिया बहुत बड़ी लगती थी। हर दिन, हर पल, कुछ नया देखने को मिलता था। कभी कोई रेंगती इल्लियां, कभी कोई गिरे हुए रोटी के टुकड़े, कभी किसी बच्चे की हँसी, तो कभी एक भारी पांव की छाया। हमारे लिए जीवन का मतलब है… सिर्फ