अंधेरी गुफ़ा – भाग 8 : “ललिता का श्राप”पत्थर गिरने की आवाज़ पूरे अंधेरे में गूँज उठी।गुफ़ा का मुँह अब पूरी तरह बंद था।अर्जुन ने चीखकर बाहर पुकारा —“कोई है? सुनो! कोई है क्या बाहर?”पर बाहर से कोई आवाज़ नहीं आई।सिर्फ गुफ़ा की दीवारों से किसी के रुक-रुक कर रोने की आवाज़ आ रही थी।उसने लालटेन जलाने की कोशिश की, पर लौ बार-बार बुझ जाती थी।फिर अचानक दीवारों पर नीली रोशनी झिलमिलाने लगी —जैसे खुद पत्थर सांस ले रहे हों।वह आगे बढ़ा।हवा में ठंडक और एक अजीब-सी गंध थी — मिट्टी, खून और किसी पुराने फूल की।हर कदम पर गुफ़ा